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अंगिका भाषा : इतिहास, व्याकरण, शब्दकोश और सांस्कृतिक महत्व

भारत बहुभाषी, बहुजातीय और बहुसांस्कृतिक परंपराओं का धनी देश है। यहाँ की प्रत्येक क्षेत्रीय भाषा अपने भीतर न केवल संवाद का माध्यम संजोए हुए है बल्कि सांस्कृतिक स्मृति, लोकज्ञान और सामाजिक संरचना का जीवंत दस्तावेज भी है। ऐसी ही एक भाषा है अंगिका, जो मुख्य रूप से बिहार के अंग क्षेत्र, झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में बोली जाती है। अंगिका, बिहार की प्राचीन अंगभूमि की भाषा है, जिसने न केवल स्थानीय समाज के विचार, संस्कृति और लोकसाहित्य को आकार दिया बल्कि प्राचीन काल से ही अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखी।

यह लेख अंगिका भाषा की उत्पत्ति और विकास, व्याकरण, शब्दसंपदा, साहित्यिक परंपरा तथा सामाजिक महत्व पर विस्तृत चर्चा करता है।

1. अंगिका भाषा की उत्पत्ति एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

1.1 भौगोलिक परिधि
अंगिका का नाम “अंग” प्रदेश से जुड़ा है। प्राचीन भारत में अंग महाजनपद (आधुनिक भागलपुर, मुंगेर, बांका, जमुई, गोड्डा, दुमका आदि क्षेत्र) एक प्रमुख राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र था। यही क्षेत्र अंगिका की मूलभूमि है।

1.2 प्राचीन संदर्भ
अंगिका की जड़ें प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में खोजी जाती हैं। पाणिनि और पतंजलि के व्याकरण ग्रंथों में अंग और इसकी बोलियों का उल्लेख मिलता है। महाभारत और बौद्ध ग्रंथों में भी “अंग” का उल्लेख है।

1.3 भाषाई वंशावली
अंगिका, इंडो-आर्यन भाषा परिवार की पूर्वी उपशाखा से संबंधित है। यह मैथिली, मगही और भोजपुरी की तरह बिहार की प्रमुख बोलियों में से एक है, किन्तु अपनी ध्वन्यात्मक और व्याकरणिक विशेषताओं के कारण अलग पहचान रखती है।

1.4 मध्यकालीन विकास
मध्यकाल में अंगिका का प्रयोग लोकगीतों, लोककथाओं और धार्मिक आख्यानों में हुआ। अंग क्षेत्र के संत कवियों और लोककवियों ने अंगिका को अपने भाव प्रकट करने का माध्यम बनाया।

1.5 आधुनिक काल
ब्रिटिश शासन के दौरान अंगिका का प्रयोग मुख्यतः मौखिक रहा, किन्तु उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में अंगिका साहित्यिक रूप से उभरने लगी। आज यह भाषा लोकमाध्यमों, अखबारों, पत्रिकाओं और डिजिटल माध्यमों तक में अपनी जगह बना रही है।

2. अंगिका भाषा का व्याकरण

अंगिका का व्याकरण इसे अन्य बिहारी भाषाओं से अलग करता है। इसके ध्वनि-प्रयोग, शब्दरचना और वाक्य-विन्यास में विशिष्टता है।

2.1 ध्वनि विज्ञान (Phonology)

  • अंगिका में स्वर ध्वनियाँ अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट और लंबी होती हैं।
  • इसमें अघोष ध्वनियों का प्रयोग प्रमुख है।
  • उदाहरण: “क” और “ख” का उच्चारण मैथिली और मगही से भिन्न है।

2.2 संज्ञा (Noun)

  • लिंग – पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग पाए जाते हैं।
  • वचन – एकवचन और बहुवचन। बहुवचन में “सभ” (सभी) का प्रयोग होता है।
    • उदाहरण: “लइकवा” (लड़का), “लइकवा सभ” (लड़के)।

2.3 सर्वनाम (Pronoun)

  • प्रथम पुरुष: हम, हमर
  • द्वितीय पुरुष: तू, तोरा
  • तृतीय पुरुष: ओ, ओकरा

2.4 क्रिया (Verb)
अंगिका क्रियाओं में काल, वचन और पुरुष के अनुसार रूप परिवर्तन होता है।

  • वर्तमान काल: हम जाइ छी (मैं जाता हूँ)।
  • भूतकाल: हम गेलिअइ (मैं गया था)।
  • भविष्यत् काल: हम जइब (मैं जाऊँगा)।

2.5 विशेषण (Adjective)
विशेषण संज्ञा के लिंग और वचन से मेल खाते हैं।

  • सुंदर लइकी (सुंदर लड़की), सुंदर लइका (सुंदर लड़का)।

2.6 वाक्य संरचना
अंगिका में वाक्य संरचना सामान्यतः कर्ता + कर्म + क्रिया (SOV) क्रम में होती है।

  • उदाहरण: “हम किताब पढ़लिअइ।” (मैंने किताब पढ़ी)।

3. अंगिका भाषा का शब्दकोश एवं शब्दसंपदा

3.1 मूल शब्दावली
अंगिका की शब्दावली में संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश से आए शब्दों की भरमार है। साथ ही इसमें स्थानीय भूगोल, खेती-बाड़ी, लोकजीवन से जुड़े असंख्य शब्द हैं।

3.2 उदाहरण

  • परिवार संबंधी शब्द: बाप, माई, दादा, दादी, भइया, बहिन।
  • खेती-किसानी: हल, बैल, कोदो, धान, मकुनी।
  • मौसम/प्रकृति: पवन, पान्ही (बारिश), घाम (धूप)।

3.3 शब्दकोश का निर्माण
हाल के वर्षों में कई विद्वानों ने अंगिका शब्दकोश तैयार करने का प्रयास किया है। इन शब्दकोशों में न केवल शब्दों का अर्थ दिया गया है बल्कि उनके उच्चारण और व्याकरणिक प्रयोग को भी दर्शाया गया है।

3.4 अन्य भाषाओं का प्रभाव
हिंदी, उर्दू और बंगला ने अंगिका शब्दसंपदा को प्रभावित किया है। आधुनिक तकनीकी और प्रशासनिक शब्द सीधे हिंदी या अंग्रेजी से लिए जाते हैं।

4. अंगिका साहित्य और मौखिक परंपरा

4.1 लोकगीत
अंगिका लोकजीवन में गीतों का विशेष महत्व है। विवाह गीत, सोहर (जन्मगीत), झूमर, समा-चकेवा, और फगुआ अंगिका की पहचान हैं।

4.2 लोककथा और दंतकथा
गाँवों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाई जाने वाली कहानियाँ अंगिका की धरोहर हैं। इनमें पशु-पक्षियों, राजाओं, देवताओं और सामान्य जन-जीवन की घटनाओं का वर्णन होता है।

4.3 साहित्यिक योगदान
बीसवीं शताब्दी में अंगिका में कविताएँ, नाटक और कहानियाँ लिखी जाने लगीं। आज अंगिका पत्र-पत्रिकाएँ और वेबसाइटें भी सामने आ चुकी हैं।

5. समाज और संस्कृति में अंगिका

अंगिका भाषा न केवल संचार का माध्यम है बल्कि यह अंग प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान भी है। अंगिका में ही लोकनृत्य, लोकगीत और धार्मिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं। शादी-विवाह से लेकर लोकपर्वों तक अंगिका गीत और बोलचाल का प्रमुख स्थान है।

6. अंगिका भाषा के सामने चुनौतियाँ

  • संरक्षण का अभाव – स्कूल-कॉलेजों में अंगिका शिक्षण का प्रावधान नहीं है।
  • प्रभुत्वशाली भाषाओं का दबाव – हिंदी और अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ रहा है।
  • लेखन की कमी – अधिकतर साहित्य मौखिक परंपरा तक ही सीमित है।
  • सरकारी मान्यता की समस्या – अंगिका को अभी स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता नहीं मिली।

7. भविष्य की संभावनाएँ डिजिटल युग में अंगिका के संरक्षण की संभावनाएँ अधिक हैं। सोशल मीडिया, यूट्यूब, ऑनलाइन पत्रिकाएँ और मोबाइल एप्स पर अंगिका की उपस्थिति बढ़ रही है। यदि इसे शैक्षणिक स्तर पर बढ़ावा मिले और सरकारी संरक्षण प्राप्त हो तो अंगिका साहित्य और शब्दकोश का और विकास हो सकता है।

अंगिका भाषा भारतीय भाषाई परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका इतिहास प्राचीन अंग महाजनपद से जुड़ा है। इसकी व्याकरणिक संरचना, समृद्ध शब्दावली और लोकसाहित्य इसे विशिष्ट बनाते हैं। आज जबकि स्थानीय भाषाएँ अस्तित्व के संकट से गुजर रही हैं, अंगिका का संरक्षण और संवर्धन न केवल भाषाई विविधता बल्कि सांस्कृतिक विरासत को भी सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है।

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