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Mithila Painting

मधुबनी (मिथिला) पेंटिंग: एक सांस्कृतिक धरोहर

भारत की सांस्कृतिक विविधता में अनेक लोककलाओं का विशेष स्थान है, जिनमें से एक है मिथिला पेंटिंग, जिसे मधुबनी पेंटिंग के नाम से भी जाना जाता है। यह पेंटिंग बिहार राज्य के मिथिला क्षेत्र की एक पारंपरिक चित्रकला शैली है, जो अपनी विशिष्ट रंग योजना, विषयवस्तु और परंपरागत तकनीकों के लिए प्रसिद्ध है। यह न केवल एक कलात्मक अभिव्यक्ति है, बल्कि मिथिला की स्त्रियों की सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का भी सशक्त प्रतीक है।

यह लेख मिथिला पेंटिंग के इतिहास, विषयवस्तु, प्रसिद्ध कलाकारों, रंगों, उपयोगों और उसकी वैश्विक पहचान पर आधारित एक विस्तृत परिचय प्रस्तुत करता है।


मिथिला पेंटिंग का इतिहास

मिथिला पेंटिंग की उत्पत्ति प्राचीन काल में हुई मानी जाती है। इसकी जड़ें रामायण काल तक जाती हैं। कहा जाता है कि जब भगवान राम और सीता का विवाह हुआ था, तब राजा जनक ने पूरे मिथिला नगर को सुंदर चित्रों से सजाने का आदेश दिया था। उसी समय से इस कला का आरंभ हुआ।

यह चित्रकला परंपरागत रूप से महिलाओं द्वारा अपने घर की दीवारों और आंगनों पर बनाई जाती थी। विशेष अवसरों जैसे विवाह, उपनयन संस्कार, पर्व-त्योहारों में इन चित्रों का उपयोग सौंदर्य और शुभता लाने के लिए किया जाता था। यह पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण द्वारा सिखाई जाती थी।

20वीं शताब्दी में, 1960 के दशक में बिहार में आए एक भीषण भूकंप के बाद जब राहत कार्यों के दौरान भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भारतीयन झा और जर्मन कलाकार वेरोनिका फुच्स ने इन दीवारों पर बनी सुंदर चित्रकला को देखा, तब उन्होंने इसका दस्तावेजीकरण किया और इसे कागज और कैनवास पर स्थानांतरित करने की प्रेरणा दी। इसके बाद यह कला वैश्विक मंच पर आई और आज भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक बन गई है।


मिथिला पेंटिंग की विशेषताएँ और सामान्य थीम

विषयवस्तु (Themes):

मिथिला पेंटिंग में कई धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विषयों को दर्शाया जाता है। इनमें प्रमुख हैं:

  • धार्मिक दृश्य: भगवान राम, सीता, कृष्ण, राधा, लक्ष्मी, विष्णु, शिव-पार्वती, गणेश आदि की कथाएं।
  • प्राकृतिक दृश्य: सूरज, चंद्रमा, वृक्ष, फूल, पक्षी, मछलियां, हाथी, मोर आदि।
  • त्योहार और अनुष्ठान: विवाह, होली, दीपावली, छठ पूजा, उपनयन, आदि।
  • गृहस्थ जीवन: स्त्रियों का श्रृंगार, पशुपालन, कृषि कार्य आदि।
  • नारी विषयक चित्रण: नारी शक्ति, मातृत्व, श्रृंगार, प्रेम और जीवन के संघर्ष को दर्शाती रचनाएं।

कलात्मक विशेषताएँ:

  • रेखाओं का प्रयोग: पतली, मोटी और ज्यामितीय रेखाओं का विस्तृत प्रयोग किया जाता है।
  • भराव (Filling): खाली स्थानों को फूल, पत्तियों, लहरों, बिंदुओं आदि से सजाया जाता है।
  • समानुपात और संतुलन: आकृतियों में सुंदर संतुलन और समानुपात होता है।
  • रंग योजना: प्राकृतिक और विशुद्ध रंगों का प्रयोग किया जाता है।

किस तरह के रंगों का प्रयोग होता है?

मिथिला पेंटिंग पारंपरिक रूप से प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती है। आज भी कई कलाकार इसी विधि को अपनाते हैं:

  • काला रंग: जली हुई लकड़ी या कोयले से।
  • लाल रंग: हल्दी और पीपल की छाल से।
  • पीला: हल्दी, अमरबेल से।
  • हरा: पत्तियों (पान, नीम) से।
  • नीला: अपराजिता फूल से।
  • गुलाबी/नारंगी: कुसुम, पलाश फूल से।
  • सफेद: चावल के आटे से।

रंगों को बाँधने के लिए नीम गोंद या गोंद की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है, जिससे वे लंबे समय तक टिकते हैं।

आज के समय में हालांकि पोस्टर कलर, ऐक्रेलिक और फैब्रिक रंगों का भी प्रयोग होता है, खासकर व्यावसायिक पेंटिंग में।


मिथिला पेंटिंग के प्रसिद्ध कलाकार

सीता देवी:

मिथिला पेंटिंग को वैश्विक मंच पर पहुंचाने वाली प्रमुख महिला कलाकार। इन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

गोदावरी दत्त:

इन्हें भी पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इन्होंने पारंपरिक कचा कागज और प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करते हुए अनेक रचनाएं की।

महामाया देवी:

इनकी चित्रशैली धार्मिक कथाओं और नारी जीवन पर केंद्रित रही।

भावना देवी:

देश-विदेश में अपनी रचनाओं की प्रदर्शनी लगाकर मिथिला कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में भूमिका निभाई।

दुर्गा बैद्य, करुपैया देवी, बऊरी देवी, संतोषी झा, और बबीता देवी:

इन जैसे अनेक नाम हैं जिन्होंने इस कला को जीवंत बनाए रखा और अगली पीढ़ी तक पहुंचाया।


मिथिला पेंटिंग का उपयोग कहाँ-कहाँ होता है?

पारंपरिक उपयोग:

  • घरों की दीवारों और आंगन को सजाने में
  • विवाह मंडपों, पूजन स्थल, और त्योहारों में
  • कोहबर घर की दीवारों पर, विवाह के समय कोहबर (प्रेम और प्रजनन का प्रतीक) पेंटिंग बनाई जाती है।

आधुनिक उपयोग:

  • कपड़े और वस्त्र: साड़ी, दुपट्टा, कुर्ता, स्टोल आदि पर मिथिला डिज़ाइन का प्रिंट या हाथ से चित्रांकन
  • गृह सज्जा: वॉल पेंटिंग, पोस्टर, कुशन कवर, पर्दे, बैग्स
  • हस्तशिल्प वस्तुएं: लैंप शेड, बक्से, लकड़ी के सामान, आभूषण बॉक्स
  • कॉर्पोरेट गिफ्ट्स: मिथिला थीम पर आधारित उपहार
  • डिजिटल आर्ट और NFT: नई तकनीकों के साथ यह कला डिजिटल माध्यम में भी प्रवेश कर चुकी है।

मिथिला पेंटिंग की वैश्विक पहचान

आज मिथिला पेंटिंग भारत की सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है। इसे GI (Geographical Indication) Tag भी प्राप्त है।

  • UNESCO द्वारा मान्यता: कई मिथिला पेंटिंग कलाकारों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर सम्मान मिला है।
  • प्रदर्शनियाँ: अमेरिका, जापान, फ्रांस, इंग्लैंड, जर्मनी आदि देशों में मिथिला कला की प्रदर्शनी लग चुकी है।
  • वॉल म्यूरल्स: नेपाल और भारत के कई रेलवे स्टेशन, सरकारी भवन और एयरपोर्ट इस कला से सजे हुए हैं (जैसे मधुबनी रेलवे स्टेशन)।

मिथिला पेंटिंग और महिला सशक्तिकरण

मिथिला पेंटिंग सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण का माध्यम भी है। यह परंपरागत रूप से महिलाओं द्वारा संरक्षित और समृद्ध की गई कला है।

आज हजारों ग्रामीण महिलाएं इस कला के जरिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं। कई NGO और सरकारी संस्थाएं ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार से जोड़ रही हैं।


मिथिला पेंटिंग भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर है जो न केवल एक कला रूप है, बल्कि एक जीवन शैली, परंपरा, और सामाजिक चेतना का प्रतीक भी है। इसकी जड़ें रामायण काल से लेकर आज के डिजिटल युग तक फैली हुई हैं।

यह कला केवल रंगों और रेखाओं का समुच्चय नहीं, बल्कि जनमानस की भावनाओं, मान्यताओं और सांस्कृतिक आस्थाओं का जीवंत दस्तावेज है।

मिथिला पेंटिंग को बचाए रखना और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना हम सबका सांस्कृतिक दायित्व है।

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